इच्छा मृत्यु के वरदान के बाद भी भीष्म पितामह क्यों बाण शय्या पर लेटे रहें ?

इच्छा मृत्यु का वरदान के बाद भी भीष्म पितामह क्यों बाण शय्या पर लेटे रहें ?

Posted by NILESH WAGHELA 

मुंबई: महाभारत के युध्द में भीष्म पितामह कोरवों की तरफ से शामिल हुए थे। पांडवों के लिए उनकी तरफ से युध्द करना आसान नहीं थी। वह उम्र में काफी बड़े थे और सम्मानीय भी थे।

उनके पास इच्छा मृत्यु का वरदान भी था। यानी वह जब तक नही चाहेंगे उनकी मृत्यु नही होगी। युध्द में भीष्म पितामह को अर्जुन ने अपने बाणों से घायल कर शैय्या पर लेटा दिया था। वह कई दीन तक शैय्या पर लेटे रहे थे।

भीष्म पितामह के पिता ने उन्हे इच्छा मृत्यु का वरदान दिया था। उनकी आखरी इच्छा के कारण वह 58 दिनों तक शय्या पर लेटे रहे थे। उन्होने प्राण त्यागने के लिए उतरायण काल का इंतज़ार किया था जो 58 दिनों के बाद शुरू हुआ था। उतरायण काल में ही उन्होने अपनी इच्छा से प्राण त्याग दिया था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, उत्तरायण काल को काफी शुभ माना जाता है। इस समय मृत्यु से सर्वग में स्थान प्राप्त होता है।

भीष्म पिता ने 58 दिन के बाद अपने प्राण त्यागे जब वह बाणों की शैय्या पर लेटे हुए थे। उस समय सब उनसे मिलने आए फिर श्रीकृष्ण भी आए थे तो भीष्म पितामह ने श्रीकृष्ण से पूछा आप तो सर्व ज्ञाता हैं। सब जानते हैं, बताइए मैंने ऐसा क्या पाप किया था जिसका दंड इतना भयावह मिला तब श्रीकृष्ण ने कहा “पितामह! आपके पास वह शक्ति है, जिससे आप अपने पूर्व जन्म देख सकते हैं। आप स्वयं ही देख लेते”।

इस पर भीष्म पितामह ने कहा हे देवकी नंदन! मैं यहाँ अकेला पड़ा और कर ही क्या रहा हूँ? मैंने सब देख लिया अभी तक 100 जन्म देख चुका हूँ। मैंने उन 100 जन्मो में एक भी कर्म ऐसा नहीं किया जिसका परिणाम ये हो कि मेरा पूरा शरीर बंधा पड़ा है, हर आने वाला क्षण और पीड़ा लेकर आता है। श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया आप एक भव और पीछे जाएँ, आपको उत्तर मिल जायेगा।

भीष्म ने ध्यान लगाया और देखा कि 101 भव पूर्व वो एक नगर के राजा थे। एक मार्ग से अपनी सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ कहीं जा रहे थे। एक सैनिक दौड़ता हुआ आया और बोला "राजन! मार्ग में एक सर्प पड़ा है। यदि हमारी टुकड़ी उसके ऊपर से गुजरी तो वह मर जायेगा। भीष्म ने कहा " एक काम करो। उसे किसी लकड़ी में लपेट कर झाड़ियों में फेंक दो।" सैनिक ने वैसा ही किया। उस सांप को एक लकड़ी में लपेटकर झाड़ियों में फेंक दिया। दुर्भाग्य से झाडी कंटीली थी। सांप उनमें फंस गया। जितना प्रयास उनसे निकलने का करता और अधिक फंस जाता। कांटे उसकी देह में गड गए। खून रिसने लगा। धीरे धीरे वह मृत्यु के मुंह में जाने लगा। 18 दिन की तड़प के बाद उसके प्राण निकल पाए।

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